माना आभाव से त्रस्त सभी ,
अवरोध की ही सर्वत्र विजय ,
पर राही बना लेकर आगे बढ़ने में कैसा भय !
उसका पथ समझोता क्या जिसको मंजिल तक जाना हैं .
क्या काम हैं उसके रुकने का जिसको चलते ही जाना हैं,
अपनी शोणित से सींचे चल,
कर्मभूमि नंदन वन हैं
संघर्ष क्षेत्र ह विश्व यहाँ सिसकी भरना पागल पन हैं !
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